आओ आज हम सब मिल कायम करें मिशाल मोहब्बत की
चलो एक बार फिर मिलकर तोड़ गिराएँ दीवार नफ़रत की
जात पात धर्म मज़हब भेद भाव चलो मिटा दे अपने अंदर की
मिटा के काली रात चलो इक नई सुबह लाएँ इंसानियत की
वतन हमारा है फिर क्यूँ ना एकता से शान बढ़ाएँ हम इसकी
जनम करम जिंदगी पली बढ़ी जहाँ शुक्रगुज़ार हैं उस चमन की
चाहकर भी क्या हम कभी चुका पाएँगे ये कर्ज़ उधार वतन की
वतने आवो हवा, मिट्टी की खुशबू अनमोल उपहार है जीवन की
~Rani Jha
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