किसी ने चाहा नहीं तो किसी ने समझा भी नहीं
किसी ने सोचा नहीं तो किसी ने पूछा भी नहीं
किसी ने त्यागा नहीं, किसी ने अपनाया भी नहीं
किसी ने पाया नहीं तो किसी ने खोया भी नहीं
अस्तित्व क्या है हमारा ये समझ आता ही नहीं
रिश्ते जोड़ते-जोड़ते खुद टूटने से बच पाईं नहीं
अरमानों को मिटाकर कभी किसी से कुछ माँगा नहीं
ख्वाबों को दफ़नकर हक़ीकत को अपनाना भूली नहीं
जीना भूलकर त्याग और फर्ज़ से कभी पीछे हटी नहीं
ज़रा सी प्यार- आदर के सिवा हमने कुछ चाहा नहीं
सपने, ख्वाहिशें,आदतें, चाहतें सबकुछ बदलकर भी
हर इक रस्में वफ़ा निभाने से कभी बाज आई नहीं
मुस्कुराना भूली, जीना भूली यहाँ तक खुद को भूली
पर वक़्त ने हमारे लिए बदलाव की करवट ली ही नहीं
हमारी छवि तो हर इक रिश्तों में बसे हैं कहीं ना कहीं
फिर क्यूँ हमारे त्याग और अस्तित्व की कोई पहचान नहीं
~ Rani jha
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