मर-मर के यूँ ही जिये जा रहे हैं सब यहाँ
जैसे कि,कोई गुनाह किए जा रहे हैं सब यहाँ
ज़िंदगी को अपने ही कंधे पे ढोए जा रहे हैं सब यहाँ
फ़ासले जीवन से मृत्यु का तय किये जा रहें हैं सब यहाँ
फिर भी किसी के इंतज़ार में हैं सब यहाँ
या यूँ कहो, कि मंज़िले मौत के कतार में हैं सब यहाँ
By: Rani Jha
By: Rani Jha
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