Monday, April 17, 2017

कितने ही अरमानो को तड़पता छोड़ आए हैं |







कितने ही अरमानो को तड़पता छोड़ आए हैं |
कितने ही ख़्वाबों को बिखरता छोड़ आए हैं |
तन्हाइयों से ही आज रिश्ता जोड़ आए हैं |

मत देना धोखा ऐ हवा तू भी आज,
आशा की लौ फिर से जला के आए हैं |

हमे भी पता है की फ़िक्र नहीं ज़माने को हमारी,
फिर भी ग़म को, गले अपने लगा के आए आए हैं |

ठहर जा ऐ तूफ़ा तू भी ज़रा, 
अपनी ही हसरतों  की चिता जला के आए हैं |
कितने ही अरमानो को तड़पता छोड़ आए हैं |

~ Rani



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