
कितने ही अरमानो को तड़पता छोड़ आए हैं |
कितने ही ख़्वाबों को बिखरता छोड़ आए हैं |
तन्हाइयों से ही आज रिश्ता जोड़ आए हैं |
मत देना धोखा ऐ हवा तू भी आज,
आशा की लौ फिर से जला के आए हैं |
हमे भी पता है की फ़िक्र नहीं ज़माने को हमारी,
फिर भी ग़म को, गले अपने लगा के आए आए हैं |
ठहर जा ऐ तूफ़ा तू भी ज़रा,
अपनी ही हसरतों की चिता जला के आए हैं |
कितने ही अरमानो को तड़पता छोड़ आए हैं |
कितने ही अरमानो को तड़पता छोड़ आए हैं |
~ Rani
Share & Comment Down Below.
Follow Us On Google Plus (G+).
And Also Make Sure To
Subscribe To Our Blog !!!
No comments:
Post a Comment